छुई-मुई के पौधे को अगर कोई छू ले तो उसकी पत्तियां शरमाकर सिकुड़ जाती हैं। अपने इस स्वभाव की वजह से इसे शर्मीली के नाम से भी जाना जाता है। शर्मीले स्वभाव के इस पौधे में जिस तरह के औषधीय गुण हैं, आप भी जानकर दांतों तले उंगली दबा लेंगे। छुई-मुई को जहां एक ओर देहातों में लाजवंती या शर्मीली के नाम से जाना जाता है। वहीं, इसका वानस्पतिक नाम माईमोसा पुदिका है। संपूर्ण भारत में होने वाला यह पौधा आदिवासी अंचलों में हर्बल नुस्खों के तौर पर अनेक रोगों के निवारण के लिए उपयोग में लाया जाता है। चलिए, आज जानते हैं इस पौधे से जुडे तमाम आदिवासी हर्बल नुस्खों के बारे में…
1. छुई-मुई की जड़ों और बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से पुरुषों में वीर्य की कमी की शिकायत में काफी हद तक फायदा होता है। पातालकोट के आदिवासी रोगियों को इसकी जड़ों और बीजों के चूर्ण की 4 ग्राम मात्रा हर रात एक गिलास दूध के साथ लेने की सलाह देते हैं। ऐसा एक माह तक लगातार किया जाए तो सकारात्मक परिणाम देखे जा सकते हैं।
2. छुई-मुई और अश्वगंधा की जड़ों की समान मात्रा लेकर पीस लिया जाए और तैयार लेप को ढीले स्तनों पर हल्के-हल्के मालिश किया जाए तो धीरे-धीरे ढीलापन दूर होता है।
3. छुई-मुई के बीजों के चूर्ण (3 ग्राम) को दूध के साथ मिलाकर रोजाना रात को सोने से पहले लिया जाए तो शारीरिक दुर्बलता दूर हो जाती है।
4.छुई-मुई को आदिवासी बहुगुणी पौधा मानते हैं। उनके अनुसार, यह पौधा घावों को जल्द से जल्द ठीक करने में बहुत ज्यादा सक्षम होता है। इसकी जड़ों का 2 ग्राम चूर्ण दिन में तीन बार गुनगुने पानी के साथ लिया जाए तो आंतरिक घाव जल्द ठीक होने लगते हैं।
5. आधुनिक विज्ञान के शोधों से ज्ञात होता है कि हड्डियों के टूटने और मांस-पेशियों के आंतरिक घावों के उपचार में छुई-मुई की जड़ें काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। घावों को जल्दी ठीक करने में इसकी जड़ें सक्रियता से कार्य करती हैं।
6. छुई-मुई के पत्तों को पानी में पीसकर नाभि के निचले हिस्से में लेप करने से पेशाब का अधिक आना बंद हो जाता है। आदिवासी मानते हैं कि पत्तियों के रस की 4 चम्मच मात्रा दिन में एक बार लेने से भी फायदा होता है।
7. पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार, छुई-मुई की जड़ और पत्तों का पाउडर दूध में मिलाकर दो बार लेने से बवासीर और भगंदर रोग ठीक होता है। डांग में आदिवासी पत्तियों के रस को बवासीर के घाव पर सीधे लेपित करने की बात करते हैं। इनके अनुसार, यह रस घाव को सुखाने का काम करता है और अक्सर होने वाले खून के बहाव को रोकने में भी मदद करता है।
8. छुई-मुई की जड़ों का चूर्ण (3 ग्राम) दही के साथ खूनी दस्त से ग्रस्त रोगी को खिलाने से दस्त जल्दी बंद हो जाते हैं। वैसे डांगी आदिवासी मानते हैं कि जड़ों का पानी में तैयार काढ़ा भी खूनी दस्त रोकने में कारगर होता है।
9. मध्य प्रदेश के कई इलाकों में आदिवासियों छुई-मुई के पत्तों का 1 चम्मच पाउडर मक्खन के साथ मिलाकर भगंदर और बवासीर होने पर घाव पर रोज सुबह-शाम या दिन में 3 बार लगाते हैं।
10. यदि छुई-मुई की 100 ग्राम पत्तियों को 300 मिली पानी में डालकर काढ़ा बनाया जाए और इसे डायबिटीज रोगी को दिया जाए तो डायबिटीज में काफी फायदा होता है।
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